Sunday, May 23, 2010

या अल्लाह

हे अल्लाह, या अल्लाह
तेरी मर्ज़ी है क्या...
या अल्लाह...

वो जो मासूम हैं, वो जो महरूम है,
उनकी ग़लती है क्या...
हे अल्लाह

वो एक ज़ालिम है, तेरा सिपाही नहीं,
वो समझता है क़त्ल की मनाही नहीं,
वो जो कट के गिरे वो पूछे तुझसे,
कब होगी इस जग में तबाही नहीं...

हे अल्लाह, या अल्लाह,
तेरी मर्ज़ी है क्या,
हे अल्लाह

ईबादत - हथियार उठाना है क्या?
तेरी खिदमत में लाशें बिछाना है क्या?
क्यूँ हम मस्जिद में जा कर यूँ सजदा करें,
क्यूँ अब ये हाथ बन्दूक थामे नहीं?

हे अल्लाह, या अल्लाह...
तेरी मर्ज़ी है क्या,
या अल्लाह...